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सचिवों की हड़ताल बनी विकास में रोड़ा, रोजगार सहायकों ने संभाली पंचायतों की कमान


Nilesh Yadav
10-04-2025 08:12 PM
खैरागढ़। राज्य शासन द्वारा ग्राम पंचायत सचिवों की अनिश्चितकालीन हड़ताल के बीच एक बड़ा प्रशासनिक निर्णय लेते हुए पंचायतों में शासकीय कार्यों को पटरी पर लाने के लिए रोजगार सहायकों को अस्थायी रूप से सचिव का प्रभार सौंपा गया है। यह फैसला छत्तीसगढ़ पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 69(1) के अंतर्गत लिया गया है, जिससे ग्राम पंचायतों में ठप पड़ी प्रशासनिक गतिविधियों को पुनः सक्रिय किया जा सके। पंचायत विभाग के उप संचालक गीत कुमार सिन्हा ने जानकारी दी कि लगातार सचिवों के कार्यबहिष्कार से ग्राम पंचायतों में कामकाज की गति थम गई थी। ग्रामीण विकास, योजनाओं का क्रियान्वयन, निर्माण कार्य, सामाजिक सुरक्षा पेंशन सहित तमाम जरूरी दस्तावेजी प्रक्रिया अटक गई थी। इस स्थिति से निपटने के लिए जनपद पंचायत खैरागढ़ और छुईखदान के मुख्य कार्यपालन अधिकारियों द्वारा प्रस्ताव भेजा गया था, जिसके आधार पर यह तात्कालिक निर्णय लिया गया।
सचिवों की हड़ताल ने खड़ी की कई समस्याएं
सचिवों की गैरमौजूदगी से ग्रामीण क्षेत्रों में मनरेगा भुगतान, शौचालय निर्माण, राशन कार्ड सत्यापन, विवाह प्रमाण-पत्र से लेकर जन्म-मृत्यु पंजीयन जैसी आवश्यक सेवाएं भी ठप हो गई थीं। आमजन को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा था। ग्रामीण अंचलों में शासन की योजनाओं को अमल में लाने की पहली कड़ी पंचायत सचिव ही होते हैं, ऐसे में उनकी अनुपस्थिति ने शासन-प्रशासन की नींव को हिला कर रख दिया।
रोजगार सहायक: विकल्प नहीं, व्यवस्था की मजबूरी
रोजगार सहायकों को सचिव के प्रभार की जिम्मेदारी देना एक अस्थायी उपाय है, जिसे लेकर पंचायतों में मिश्रित प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है। कई रोजगार सहायक इस अतिरिक्त दायित्व को चुनौती के रूप में ले रहे हैं, तो कुछ इसे अपनी भूमिका से परे मान रहे हैं। वहीं, प्रशासन का कहना है कि यह निर्णय सिर्फ आमजन को राहत देने के लिए है, ताकि विकास की गाड़ी थमे नहीं।
राजनीतिक और प्रशासनिक गलियारों में चर्चा तेज
सचिवों की हड़ताल के पीछे सेवा शर्तों, वेतन विसंगति और स्थायीकरण की मांग है, जो वर्षों से लंबित है। अब जबकि रोजगार सहायकों ने मोर्चा संभाल लिया है, तो सचिवों पर भी दबाव बढ़ रहा है। प्रशासनिक हलकों में यह चर्चा तेज हो गई है कि क्या यह फैसला सचिवों की हड़ताल को कमजोर करने की रणनीति है या वाकई आमजन की सुविधा को प्राथमिकता देने का कदम?
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