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जनजातीय गूंज ने फिर रचा इतिहास: नारायणपुर के पंडीराम मंडावी को मिला पद्मश्री सम्मान

Son kumar sinha

27-05-2025 08:41 PM

छत्तीसगढ़ी लोककला को विश्व मंच पर दिलाई पहचान, राष्ट्रपति ने किया सम्मानित

नारायणपुर। छत्तीसगढ़ की माटी एक बार फिर गर्व से गूंज उठी है। जनजातीय वाद्य यंत्र निर्माता और काष्ठ शिल्पकार पंडीराम मंडावी को उनकी विलक्षण कला और लोकसंस्कृति के संवहन हेतु पद्मश्री सम्मान से नवाज़ा गया है। सोमवार को राष्ट्रपति भवन, नई दिल्ली में आयोजित समारोह में महामहिम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने उन्हें यह सम्मान प्रदान किया।

नारायणपुर जिले के गढ़बेंगाल गांव निवासी 68 वर्षीय मंडावी पिछले पाँच दशकों से छत्तीसगढ़ के पारंपरिक वाद्य यंत्रों और काष्ठ शिल्पकला के संरक्षण और प्रसार में जुटे हैं। बांसुरी, टेहण्डोंड, डूसीर, सिंग की तोड़ी, कोटोड़का, उसूड़ जैसे विलुप्तप्राय लोक वाद्य यंत्रों के निर्माण में उनकी दक्षता अद्वितीय मानी जाती है।

अंतरराष्ट्रीय मंचों पर छत्तीसगढ़ की गूंज

मंडावी जी की कला सिर्फ देश तक सीमित नहीं रही। वे रूस, फ्रांस, जर्मनी, जापान और इटली जैसे देशों में भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। उनकी काष्ठ शिल्प और वाद्य कारीगरी ने छत्तीसगढ़ की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर स्थापित किया है।

नारायणपुर जिले के लिए यह गौरव का क्षण है। इससे पूर्व वर्ष 2024 में पारंपरिक वैद्यराज हेमचंद मांझी को पद्मश्री से नवाज़ा गया था। मंडावी जिले के दूसरे व्यक्ति हैं जिन्हें यह सम्मान प्राप्त हुआ है।

छत्तीसगढ़ शासन द्वारा वर्ष 2024 में उन्हें दाऊ मंदराजी सम्मान से भी विभूषित किया गया था। यह सम्मान लोक परंपराओं को जीवित रखने वाले समर्पित कलाकारों को दिया जाता है।

मंडावी की इस ऐतिहासिक उपलब्धि से पूरे जिले में हर्ष की लहर है। जनप्रतिनिधियों से लेकर आम नागरिकों तक, सभी ने उन्हें बधाई दी है। जिला प्रशासन और सांस्कृतिक संगठनों ने इसे नारायणपुर की मिट्टी की जीत और लोकसंस्कृति की विजय बताया है।

मंडावी जी की कला यात्रा यह सिद्ध करती है कि सच्ची लगन और मेहनत से किसी भी लोककलाकार की साधना को वैश्विक पहचान मिल सकती है। यह सम्मान सिर्फ एक व्यक्ति का नहीं, बल्कि उस सांस्कृतिक परंपरा का है जिसे उन्होंने अपने हाथों से संजोया और जीवित रखा।


Son kumar sinha

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