खैरागढ़ नल-जल योजना की खुली पोल : कीड़े-कंकड़ वाला पानी पीने को मजबूर नागरिक, प्रशासन गहरी नींद में

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Khairagarh

जीवनदायिनी नदियों का जीवन संकट में, जिम्मेदारों की आंखों पर पट्टी — कब जागेगा प्रशासन?

Nilesh Yadav

29-05-2025 05:32 PM

खैरागढ़। कभी निर्मल जलधारा और आस्था का प्रतीक रहीं आमनेर, मुस्का और पिपरिया नदियां आज गंदगी की दलदल में सिसक रही हैं। इन नदियों में लगातार गिर रही गंदगी और सीवेज के चलते नदियां मृतप्राय हो चुकी हैं, मगर जिम्मेदारों की नींद अब तक नहीं टूटी है।

शहर के विभिन्न वार्डों से निकलने वाला कचरा और नालियों का गंदा पानी सीधे इन नदियों में गिर रहा है। वार्ड नंबर 18 के शिव मंदिर रोड के पास आमनेर नदी में बहता प्लास्टिक और गंदा पानी इस बात की गवाही देता है कि नगर प्रशासन और जनप्रतिनिधियों के लिए यह संकट प्राथमिकता में ही नहीं है।

सिर्फ आश्वासन, कोई ठोस कदम नहीं

नगर पालिका खैरागढ़ के सीएमओ नरेश वर्मा कहते हैं कि "तीन स्थानों पर एसटीपी (सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट) बनने जा रहे हैं," मगर हकीकत यह है कि नालों को नदियों से अलग करने की कोई योजना जमीन पर दिखती ही नहीं। ना डीपीआर, ना टेंडर, ना ही काम शुरू। बस घोषणाओं का मायाजाल फैला हुआ है।

बदबू के चलते पूजा-पाठ भी बंद

स्थानीय निवासी राम यादव कहते हैं पहले लोग नदियों के किनारे पूजा करते थे आज बदबू के मारे वहां खड़ा नहीं हुआ जाता। हमने यहां स्नान किया है अब बच्चों को बताने में भी शर्म आती है कि ये कभी नदी थी। यह केवल एक व्यक्ति की व्यथा नहीं बल्कि पूरे शहर की आत्मा का दर्द है।

जनता की जागरूकता, प्रशासन की बेपरवाही

स्वयंसेवी संस्था निर्मल त्रिवेणी महाअभियान ने जरूर मोर्चा संभाला और नदियों की सतही सफाई कर कुछ प्रयास किए, लेकिन जब तक प्रशासनिक इच्छाशक्ति और नीति-निर्धारण नहीं होगा तब तक यह प्रयास रेत पर पानी जैसा ही होगा।

क्या सिर्फ जनता दोषी है?

प्रशासन हर बार यही कहता है कि "जनता गंदगी फैलाती है लेकिन सवाल यह है कि फिर शासन-प्रशासन किसलिए है? क्या नगर पालिका की जिम्मेदारी केवल टैक्स वसूलना भर रह गई है?

अगर सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट अभी तैयार नहीं हैं तो शॉर्ट टर्म समाधान जैसे नालों को नदी से दूर मोड़ना, सोख्ता गड्ढों का बेहतर निर्माण, अस्थायी फिल्टर सिस्टम जैसी व्यवस्थाएं क्यों नहीं की गईं?

अब नहीं जागे, तो कल बहुत देर हो जाएगी

खैरागढ़ की नदियां सिर्फ जल स्रोत नहीं, संस्कृति और जीवन का हिस्सा हैं। अगर इन्हें अब भी नहीं बचाया गया, तो अगली पीढ़ी के लिए सिर्फ गंदा नाला और बुजुर्गों की यादें ही बचेंगी।


Nilesh Yadav

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