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बाउंसरों की बदसलूकी के खिलाफ पत्रकारों का हंगामा – मुख्यमंत्री निवास घेरा, IFWJ ने पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग दोहराई


Son kumar sinha
26-05-2025 05:51 PM
रायपुर। राजधानी के मेकाहारा अस्पताल में रविवार और सोमवार की दरम्यानी रात पत्रकारों के साथ हुई बदसलूकी की घटना ने पूरे प्रदेश के मीडियाकर्मियों में आक्रोश भर दिया है। उरला में चाकूबाजी की खबर को कवर करने पहुंचे पत्रकारों के साथ प्राइवेट बाउंसरों ने न केवल धक्का-मुक्की और अभद्रता की, बल्कि पिस्टल लहराकर खुलेआम धमकाया। सबसे चिंताजनक बात यह रही कि यह सब कुछ पुलिस की मौजूदगी में हुआ, लेकिन तैनात पुलिसकर्मी मूकदर्शक बने रहे।
CM निवास के सामने प्रदर्शन, कार्रवाई को मिला मजबूरी में अंजाम
घटना के विरोध में राजधानी के पत्रकारों ने पहले मेकाहारा अस्पताल के सामने प्रदर्शन किया, लेकिन जब प्रशासन की ओर से कोई ठोस प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो बड़ी संख्या में पत्रकार देर रात मुख्यमंत्री निवास के सामने जुट गए और कड़ा प्रदर्शन किया। दबाव बढ़ने पर पुलिस हरकत में आई और तीन आरोपियों को हिरासत में लेकर उन्हें हथकड़ी पहनाकर सार्वजनिक रूप से घुमाया गया।
CCTV में कैद गुंडागर्दी, IFWJ ने जताई कड़ी नाराजगी
यह पूरी घटना अस्पताल के CCTV कैमरों में रिकॉर्ड हो चुकी है। वीडियो सामने आने के बाद इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के राष्ट्रीय सचिव शिवशंकर सोनपिपरे ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में पत्रकारों के साथ इस तरह की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। चाहे सरकारी संस्थान हो या निजी, रिपोर्टिंग कर रहे पत्रकारों को डराने-धमकाने और हमलों का शिकार बनाया जा रहा है।
स्थायी समाधान की जरूरत – पत्रकार सुरक्षा कानून हो तत्काल लागू
शिवशंकर सोनपिपरे ने कहा कि इस बार पत्रकारों की एकजुटता से कार्रवाई हो सकी, लेकिन हर बार ऐसा होना संभव नहीं है। उन्होंने याद दिलाया कि पिछली भूपेश बघेल सरकार ने पत्रकार सुरक्षा कानून का मसौदा तैयार किया था, जिसे वर्तमान सरकार ने अब तक लागू नहीं किया है। उन्होंने मांग की कि हालिया घटना को चेतावनी मानते हुए पत्रकार सुरक्षा कानून को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए, ताकि मीडिया की स्वतंत्रता और पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
एकजुटता ने दिखाई ताकत, अब कानून की बारी
इस घटना ने फिर साबित किया है कि जब पत्रकार एकजुट होते हैं, तो व्यवस्था को झुकना पड़ता है। लेकिन अब समय आ गया है कि कलम की ताकत को संरक्षित रखने के लिए ठोस और स्थायी सुरक्षा कानून बनाया जाए, जिससे पत्रकारिता भयमुक्त होकर अपने कर्तव्य का निर्वहन कर सके।
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