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संघर्ष की सवारी पर सवार मिलापा निषाद : जो कभी मजदूर थी, आज ई-रिक्शा चला रही है आत्मनिर्भरता की मिसाल बनकर"


Nilesh Yadav
01-05-2025 11:59 AM
खैरागढ़। कहते हैं, हौसले बुलंद हों तो कोई भी मंज़िल दूर नहीं होती। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है खैरागढ़ के समीपवर्ती ग्राम बकालसर्रा, कटंगी कला की रहने वाली मिलापा निषाद ने। साधारण किसान परिवार में जन्मी, आठवीं तक की शिक्षा प्राप्त मिलापा आज ई-रिक्शा चलाकर न सिर्फ अपने दो बच्चों की पढ़ाई का खर्च उठा रही हैं, बल्कि पूरे परिवार की आर्थिक जिम्मेदारी भी बखूबी निभा रही हैं।
पति बैंगलोर में, मिलापा ने थामा स्वावलंबन का स्टीयरिंग
साल 2008 में ससुराल आने के कुछ माह बाद ही उन्होंने जय माँ सरस्वती महिला स्वयं सहायता समूह से जुड़कर छोटे-मोटे कार्य शुरू किए। महिला समूहों के माध्यम से उन्होंने आत्मनिर्भरता की राह पकड़ी। कभी 1 लाख रुपए का मकान लोन लेकर, कभी मजदूरी करके किस्तें चुकाते हुए वे धीरे-धीरे आगे बढ़ती रहीं। कठिनाइयों ने रास्ता रोका जरूर, लेकिन उनके हौसलों को झुका नहीं सकीं।
बिहान समूह से मिली नई उड़ान
2019 में 'बिहान' योजना से जुड़ने के बाद मिलापा की मेहनत और लगन को सही मंच मिला। समूह की महिलाओं और शुभम संकुल के सदस्यों ने जब मिलापा के भीतर छुपे आत्मबल को पहचाना, तो उन्हें सलाह दी गई कि वे ई-रिक्शा लेकर खुद का व्यवसाय शुरू करें। बिना किसी डाउन पेमेंट के 2 लाख 20 हजार रुपये का लोन मिला और मिलापा ने दृढ़ निश्चय के साथ नई शुरुआत की।
सुबह 8 से शाम 6 तक चलती है संघर्ष की गाड़ी
हर दिन अपने घर से खैरागढ़ बस स्टैंड पहुंचकर वे सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक ई-रिक्शा चलाती हैं। बच्चों का खाना बनाना, स्कूल भेजना, और दिनभर की भागदौड़ – सबकुछ वे अपने जिम्मे निभाती हैं। जरूरत पड़ने पर रात में भी मरीजों को अस्पताल पहुंचाने के लिए तैयार रहती हैं।
तानों के बीच बढ़ाया आत्मविश्वास का कदम
शुरुआत में गांव के लोगों ने ताने मारे, "महिला होकर रिक्शा चलाती है?" लेकिन मिलापा ने कभी अपने कदम नहीं रोके। समाज की गलत नजरों और कड़वी बातों के बीच उन्होंने खुद को कर्मठ बनाए रखा। पति नरेन्द्र निषाद ने हर मोड़ पर उनका साथ दिया और यही साथ उन्हें मजबूती देता रहा।
बनीं महिला सशक्तिकरण की प्रतीक
आज मिलापा निषाद उन महिलाओं के लिए एक प्रेरणा हैं, जो यह मान बैठी हैं कि वे कुछ नहीं कर सकतीं। उनके जीवन की कहानी यह बताती है कि हालात चाहे जैसे भी हों, अगर इरादे मजबूत हों तो कोई भी काम मुमकिन है।
"मैंने अपने काम से जवाब दिया है" - मिलापा
मिलापा कहती हैं, "लोगों ने बहुत कुछ कहा, लेकिन मैंने अपने काम से जवाब दिया। मुझे अपने कर्मों पर भरोसा था और मेरे पति का साथ मेरी ताकत बनी रही। आज मैं गर्व से कह सकती हूँ कि एक महिला सब कुछ कर सकती है, अगर उसे अवसर और आत्मविश्वास मिले।
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