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नगर पालिका के अफसरों का सवा करोड़ का खेला! जेम पोर्टल की पारदर्शिता भी हुई धुंधली, रेस्टोरेंट में बटी मलाई – शिकायत पहुंची कलेक्टर तक


Nilesh Yadav
03-07-2025 09:09 AM
खैरागढ़। नगर पालिका परिषद में खरीदी–निविदा का खेल अब खुलकर सामने आ गया है। पंद्रहवें वित्त मद की सवा करोड़ रुपए से ज़्यादा की खरीदी में जो हेराफेरी हुई, उसने न सिर्फ शासन की मंशा को धता बता दिया बल्कि जेम पोर्टल की पारदर्शिता को भी सवालों के घेरे में खड़ा कर दिया है। ठेकेदार क्षत्रिय एसियो दुर्ग की कंपनी के प्रवीण सिंह बैस ने सीधे-सीधे नगर प्रशासन विभाग के संयुक्त संचालक, संचालक और कलेक्टर से पूरे मामले की जाँच की मांग की है। आरोप है कि नियम–कायदों को ताक पर रखकर, दस्तावेज़ों की खानापूर्ति का नाटक कर टेंडर को मनमर्जी से अपात्र किया गया ताकि मलाईदार ठेका अपने लोगों को परोसा जा सके। सूत्र बताते हैं कि टेंडर खोलने से पहले ही नगर पालिका अध्यक्ष, सीएमओ, इंजीनियर और कुछ पार्षदों की मिलीभगत से पुराने वेंडरों की एक खास बैठक रेस्टोरेंट में हुई। वहीं तय हुआ कि किसे ठेका देना है और किसे दूर रखना है। बाकायदा स्क्रिप्ट लिखी गई और फिर ऑनलाइन प्रक्रिया में खामी दिखाकर क्षत्रिय एसियो जैसी कंपनियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। प्रवीण सिंह बैस का कहना है कि उन्होंने सभी दस्तावेज नियमानुसार अपलोड किए, पर एटीसी के 24 बिंदुओं में से किस बिंदु पर कमी निकाली गई यह तक नहीं बताया गया। दस्तावेज़ दोबारा देने के बाद भी स्पष्ट ना होने जैसे बहाने से उन्हें फिर अपात्र करार दे दिया गया। नगरपालिका ने इस खेल में एक करोड़ 31 लाख से ज़्यादा की रकम में 2 नग स्काई लिफ्ट, 2 टिप्पर, 2 हाइड्रोलिक ट्रॉला, 20 रिक्शा, 40 हाथ ठेला, 150 स्टील डस्टबिन और ई-रिक्शा खरीदने का टेंडर निकाला था। पहले ही ठेके पर वर्क ऑर्डर जारी कर दिया गया और फिर आनन-फानन टेंडर निरस्त भी कर दिया गया वह भी बिना वित्तीय समिति और पीआईसी की अनुमति के। नियम साफ कहते हैं कि टेंडर निरस्त करने का अधिकार सिर्फ पीआईसी को है, लेकिन यहां तो सीएमओ ने खुद ही टेंडर रद्द कर दिया। जेम पोर्टल की प्रक्रिया नगर पालिका के अधिकृत कंप्यूटर से ही करनी होती है, लेकिन सूत्र बताते हैं कि इस बार ठेकेदार या वेंडर के लैपटॉप से ही टेंडर प्रक्रिया चलाई गई। आईपी एड्रेस की जाँच होने पर सारा घालमेल सामने आ जाएगा। नगरपालिका के इंजीनियर और टेंडर शाखा के अधिकारियों पर भी गंभीर सवाल उठे हैं – टेंडर रद्द होने के बावजूद निविदाकार को ब्लैकलिस्ट क्यों नहीं किया गया? क्यों मनमानी कर पुराने वेंडरों को फायदा पहुँचाया गया? प्रवीण सिंह बैस ने चेतावनी दी है कि अगर निष्पक्ष जांच नहीं हुई तो न्याय के लिए वे हाईकोर्ट का दरवाज़ा खटखटाएंगे। उनका दावा है कि अगर सभी निविदाकारों के दस्तावेज़ों की सूक्ष्म जाँच हो, तो दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा तब यह भी साफ हो जाएगा कि किसके दस्तावेज़ वास्तव में अधूरे थे और किसे “अपनेपन” की मलाई खिलाई गई। नगरपालिका में पारदर्शिता के नाम पर चले इस खेल ने न सिर्फ शासन को आर्थिक नुकसान पहुँचाया है, बल्कि पूरी व्यवस्था की साख पर भी बट्टा लगाया है।
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