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कृष्ण कुंज : बच्चों के सपनों की बगिया बना अय्याशी और नशे का अड्डा! कौन है जिम्मेदार? सवालों के घेरे में वन विभाग व नगर पालिका की निष्क्रियता


Nilesh Yadav
13-06-2025 07:42 PM
खैरागढ़ : कभी बच्चों की किलकारियों से गूंजने वाला कृष्ण कुंज आज नशे में धुत युवाओं और अय्याशी के खुले अड्डे में तब्दील हो चुका है। यह वह स्थान था जिसे विकसित कर शहर के बच्चों और परिवारों के लिए एक हरियाली भरा, सुरक्षित और सुखद पार्क के रूप में बसाया गया था — लेकिन आज इसकी पहचान शर्म और असुरक्षा का प्रतीक बन चुकी है। दिन के उजाले में दीवार फांदकर लड़के-लड़कियां संदिग्ध अवस्था में भीतर दाखिल होते हैं और वहां बैठकर न केवल अपनी व्यक्तिगत कहानियां और भावनाएं साझा करते हैं, बल्कि खुलेआम शालीनता की सीमाएं लांघते देखे जा सकते हैं। कृष्ण कुंज अब प्रेमी जोड़ों का “प्राइवेट जोन” बन चुका है, जहाँ मानो कोई नियम, कोई मर्यादा शेष नहीं रही। रात में और भी भयावह रूप लेता है कृष्ण कुंज...
जब सूरज ढलता है, तो यहां की बत्ती भी बुझ जाती है, और अंधेरा भर जाता है असामाजिक तत्वों से — शराबियों और गांजा पीने वालों का अड्डा रात होते ही सजने लगता है। वहाँ से गुजरने वाला हर आमजन डर और असहायता महसूस करता है। शराब और नशे में चूर युवक किसे गाली दे रहे हैं, किससे भिड़ रहे हैं किसी को कुछ समझ नहीं आता। ऐसा लगता है मानो प्रशासन ने इस क्षेत्र को असामाजिक तत्वों के लिए आरक्षित कर दिया हो।
एक ओर यह स्थान वन विभाग के अधीन है, वहीं नगर पालिका के जिम्मेदार अफसर भी सोते नजर आते हैं। न सुरक्षा गार्ड, न नियमित सफाई, न लाइट की व्यवस्था मानो ‘कृष्ण कुंज’ सिर्फ नाम का पार्क बचा है। झूले भी खुद के अस्तित्व पर शर्मिंदा हैं...
जो झूले बच्चों की हँसी के लिए लगाए गए थे, आज शराबियों के हिलते डुलते कदमों की भेंट चढ़ चुके हैं। झूले अब खुद भी लड़खड़ा रहे हैं जैसे शासन और प्रशासन की जिम्मेदारियाँ लड़खड़ा गई हैं।
क्रांतिकारी संदेश टीम की पड़ताल
बीती रात हमारी टीम जब मौके पर पहुँची, तो वहां कुछ युवक झुंड बनाकर खुलेआम शराब की बोतलें उड़ेलते और गांजा के धुएं में खुद को खोए हुए मिले। और आज दोपहर, हमारी टीम ने देखा — कुछ युवक-युवतियां ऐसी संदिग्ध अवस्था में पार्क में मौजूद थे जिसे देखकर हम स्वयं शर्मसार हो उठे। यह वह जगह थी जहां बच्चों को खेलना था न कि समाज की मर्यादाएं टूटनी थीं। अब सवाल ये उठता है... क्या प्रशासन इस गिरते सामाजिक परिदृश्य को देखकर भी आंखें मूंदे रहेगा? क्या वन विभाग और नगर पालिका सिर्फ योजनाओं की फाइलों में ही सुधार दिखाएंगे?
क्या बच्चों की सुरक्षित परवरिश अब सिर्फ भाषणों तक सीमित रह गई है?
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